05 April 2017

श्री राम जानकी मंदिर नवागढ़ का इतिहास


मंदिर का निर्माण- राजा नरवर साय की नगरी नवागढ़ में 300 वर्ष पहले का श्री राम मंदिर एवं 100 वर्ष पहले का श्री कृष्ण मंदिर साथ में है। बताया जाता है कि  दीवान परिवार (गुप्ता) द्वारा संवत 1606 में यहां मंदिर का निर्माण कराया गया था, जो कवर्धा राजा के दीवान व  नवागढ़ से 8 किमी दूर ग्राम हांथाडाडू के रहने वाले थे। हांथाडाडु के दीवान (गुप्ता) परिवार द्वारा पूजा देख-रेख के लिए वैष्णवों को सौंप दिया गया । यह मंदिर समेसर के महंत परिवार के अधिनस्थ  है। इस मंदिर में स्थापना से अभी तक प्रतिदिन सुबह-शाम शंख एवं घंटे की धुन के साथ पूजा आरती की जाती है।

श्री राम-कृष्ण मंदिर
एक ही दृश्य में राम, कृष्णा, शिव, आचार्य पादुका  व  महंत पादुका मंदिर
विशेष पर्व - वही वर्ष में 5 बार गुरू पूर्णिमा, श्री कृष्ण जन्माष्ठमी, दशहरा, गोवर्धनपूजा तथा रामनवमी के उपलक्ष्य में विशेष कार्यक्रम होते है । इस पर्व पर श्रीराम कृष्ण की मूर्तियों का श्रृंगार किया जाता है और   भंडारे की व्यवस्था की जाती है, सैकड़ो नागरिक दर्शन करने मंदिर पहुंचते है ।

कृष्ण मंदिर बना राम मंदिर- यहाँ पहले श्री राधा कृष्ण की मूर्ति स्थापित होनी थी। राम जी की मूर्ति बिकने गाड़ी भैंसा से नवागढ़ लाया गया था, तो मूर्ति खरीदने के लिए विक्रेता से सौदा नहीं पटने पर विक्रेता कही दूसरी जगह मूर्ति बेचने जा रहे थे, तो मूर्तियां इतनी भरी हो गयी की  2-3 गाड़़ा टूट गया, पर गाड़ा  नही बढ़ा, फिर मूर्ति को पुराने भाव पर जिस पर बात नही बन रही थी,विक्रेता दे गया, जिसे गुप्ता परिवार लेकर मंदिर में पधराये ।
राम मंदिर का  गर्भगृह 
 बाद में बगल के कृष्ण मंदिर का निर्माण तृतीय महंत बंसी दास जी द्वारा सन 1911 (संवत 1968) में कराया गया, जिसकी लागत उस समय 25 हजार रुपए आयी थी।{2}
श्री राधा कृष्ण 
श्री कृष्णा जी की मूर्ति काले ग्रेनाइट पत्थर से  बनी है तथा श्री राम जानकी ,लक्ष्मण  व  राधा जी सहित अन्य  मूर्तियां लोगो को संगमरमर से बनी हुई प्रतीत होती है , पर यह सफ़ेद ग्रेनाइट पत्थर से बनी है {1}
 गर्भगृह- राम मंदिर के गर्भगृह में  श्रीराम के साथ पश्चिम दिशा में राधा- कृष्ण जी की मूर्ति स्थापित है, राम जी के सामने पूर्व में गरुड़जी व पश्चिम में हनुमान जी की मूर्ति है। श्री राधाकृष्ण मंदिर के परिसर में नरसिंह, परशुराम, गरुड़ जी ,हनुमान जी, वाराह एवं जय विजय की मूर्ति भी स्थापित है।


राम मंदिर, कृष्ण मंदिर एवं शिव मंदिर के चौखट पत्थर से निर्मित  हैं  {1श्री राधाकृष्ण मंदिर की चौखट में शिवलाल  कारीगर का नाम अंकित है। इस मंदिर का चौखट पत्थर का बना हुआ है । 
पत्त्थर से बना श्री कृष्ण मंदिर का चौखट 
चौखट जिसमे शिवलाल कारीगर का नाम लिखा है 

तैरता पत्थर- सन 2008 में मंदिर के महंत श्री मधुबन दास जी के द्वारा रामेश्वरम के निकट धनुष कोटि नमक स्थान से राम सेतु का पत्थर  लाया गया था, जो इस कुंड में रखा हुआ है
राम सेतु से लाया तैरता पत्थर 
चरण पादुका - श्रीराम कृष्ण मंदिर की परिक्रमा करने पर मंदिर के पूर्व दिशा के उत्तर मुख में चारो आचार्य रामानंदाचार्य, निम्बारकाचार्य, माधवाचार्य, वल्लभाचार्य की चरण पादुका रखी है ।
चरण पादुका मंदिर 
चरण पादुका 
चरण पादुका 
तो पूर्व दिशा में प्रथम महंत कांशीदास, द्वितीय महंत प्रयागदास की चरण पादुका रखी है ।
महंतो की चरण पादुकाए 

धुनी- नवागढ़ के श्री राम कृष्ण मंदिर में धुनी का स्थल है , जहां प्रतिदिन धुनी जलार्इ जाती है । मंदिर में संतों के बैठने के लिए मकान है,धुनी की जगह अलग है, दक्षिण में मवेशी-कोठा व बाड़ी में कुआं है।
श्री राम जी के सम्मुख जो हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है वह राम मंदिर के समकालीन है
श्री राम मंदिर के सम्मुख स्थित हनुमान जी 
मुर्तिया- श्री कृष्ण मंदिर के पूर्व दक्षिण कोर के उपरी भाग में मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित है ।  तो पूर्व  में श्री गणेश, माता पार्वती, कार्तिक, शेषनाग, शिवलिंग के साथ स्थापित है ।  बाहर से नंदी विराजमान है । श्रीराम कृष्ण मंदिर के चारों दिशाओं के उपरी भाग में कोणार्क, खजूराहो, भोरमदेव के मंदिरों की तरह के चित्र अंकित है। श्री राम मंदिर के चारो दिशाओ ंमें दूसरे भाग में धरम दरवाजा बने है ।
शिव जी,बलभद्र, नागदेव, पार्वती जी व गणेश जी  
 मंदिर के बाड़ी में एक प्राचीन कुआ है 
मंदिर के बाड़ी में स्थित कुआँ 
मंदिर के महंत मधुबन दास वैष्णव जी के अनुसार मंदिर के पट बंद होने पर धरम दरवाजा के दर्शन से गर्भगृह स्थित भगवान के दर्शन का पुण्य मिलता है ।
आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व मंदिर में संस्कृत विद्यालय का सञ्चालन किया जाता था, जो लगभघग 4-5 वर्षो तक चला ।{1}
महंत- इस मंदिर की देख-रेख समेसर के महंत परिवार द्वारा किया जा रहा है । जिसके प्रथम महंत कांशीदास, द्वितीय प्रयागदास, तृतीय बंशीदास, चतुर्थ बलभद्र प्रसाद, पंचम बृजभूषण दास तथा वर्तमान महंत मधुबन दास है ।



पुजारी अनुरागी दास जी - जो बचपन से मंदिर में पूजा करते थे, उनका उम्र 90 वर्ष का हो चुका था, फिर उनका स्वर्गवास हो गया।


श्री राम मानस यज्ञ स्थली- विगत कुछ वर्षो से राम मंदिर में श्री राम मानस यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है, जिसमे सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु रोज परिक्रमा लगाने पहुचते है  

श्री राम मानस यज्ञ स्थली 
स्रोत:
{1}मधुबन दास जी 
{2}रामनाथ ध्रुव जी 
{3}अजय अरोरा जी 

30 March 2017

गुरुवाईन चौरा का इतिहास नन्द गुप्ता जी के द्वारा

वीडियो-
 
गुरुवाईन चौरा/ नाग चौरा 
सभागार जहाँ रामायण हुआ करता  था

सभागार जहाँ रामायण हुआ करता  था




सभागार के अंदर का दृश्य 

28 March 2017

बुचीपुर मां महामाया का इतिहास


अठारहवीं शताब्दी मे आज से लगभग 150 साल पहले ओंकारपुरी गोस्वामी यहां के मालगुजार थे,उनके मुख्तियार थे ठाकुर राम वर्मा । 

एक बार ठाकुरराम को मालगुजार की हवेली में सोते हुए स्वप्न आया कि वह ग्राम बुचीपुर में कथित हवेली के सामने माँ महामाया की मूर्ति की स्थापना करें।


सुबह सपने की बात को मुख्तियार ने मालगुजार को बतायी बस मालगुजार और मुख्तियार दोनो की सहमति हुर्इ और तत्काल नवागढ़ जिसकी दूरी ग्राम से लगभग 16 कि.मी. है, जहां तालाब के अंदर देवी मां महामाया की मूर्ति थी, को लेने सुंदर मुहूर्त निकालकर दोनो भक्त नवागढ़ आये, मूर्ति को ले जाने का एक मात्र साधन उस जमाने में बैल गाड़ी था ।

पूजा अर्चना के पश्चात मूर्ति को गाड़ी में आरूढ़ किए फिर उनका काफिला बूचीपुर के लिए कूच किया ।

रास्ते में मूर्ति की गाड़ी खड़ी हो जाती थी । वहां उनकी पूजा-अर्चना और बकरे की बली देते पुन: वह गाड़ी वहां से पलायन करती, कुछ दूर पर फिर रूक जाती, फिर वहां नारियल हूम देते, बकरे की बली देते ।

इस तरह बूचीपुर पहूंचते-पहुंचते छः आखा नारियल (720 नारियल) और तीन दौंरी बकरा (36 बकरा) के बलिदान एवं पूजा-अर्चना के पश्चात मां महामाया ग्राम बूचीपुर मे अपनी स्थापित होने की जगह मे पधारीं । फिर सुंदर समय पर महामाया की प्राण प्रतिष्ठा की गई ।

भक्त जिन्हे विश्वास है, लगन है, श्रद्धा है, चैत्र और कुंवार दोनो माह में आज तक निरंतर मनोकामना ज्योति प्रज्जवलित किए जाते है ।

माँ महालक्ष्मी मंदिर नवागढ़ का इतिहास


माँ महालक्ष्मी जी की जो सिद्धमूर्ति अभी मंदिर में विराजमान वह स्वयंभू है,  मंदिर के निकट अभी जहाँ कुआँ है, उसी स्थान से महालक्ष्मी जी मूर्ति को 200 वर्ष पूर्व जमीन से खोदकर निकाला गया था। 

मूर्ति के प्राप्त होने की कथा-  नवागढ़ में एक ब्राम्हण थे, जिनकी कोई संतान नहीं थी, इसलिए वह संतान की याचना करने रतनपुर के लखनी (एकवीरा) देवी के मंदिर गया, वहाँ एक आसन में बैठकर 9 दिनों तक उन्होंने देवी की आराधना की। 9वे दिन सिद्धिदात्री रात्रि के वक्त मां लखनी देवी उनके कानों में आकर के कहने लगी कि मेरी छोटी बहन तुम्हारे ग्राम नवागढ़ में है, अमुक स्थान में जमीन के नीचे मूर्ति दबी हुई है, जमीन की खुदाई करवाओ, मंदिर बनवाओ, मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करवाओ, तो तुम्हारे घर मे 5 संताने होंगी। 2 बेटे होंगे, 3 कन्याएं होंगी और कन्याओं का वंश चलता रहेगा, ऐसा आशीर्वाद माता लखनी देवी ने दिया। फिर पंडितजी नवागढ़ आए और पंडितों से सलाह ले कर गस्ती पेड़ के नीचे सुरकी तालाब के पास जमीन की खुदाई की,जिससे वहाँ माँ महालक्ष्मी जी की  मूर्ति प्राप्त हुई । तत्पश्चात माँ महालक्ष्मी जी की पूजा अर्चना कर विधिवत स्थापना की गयी, जिससे उस ब्राम्हण को सन्तान की प्राप्ति हुई  
माँ लक्ष्मी जी की मूर्ति के निचे जो छोटी मूर्ति है, उसकी स्पष्ट संज्ञा नही है, परंतु कई उन्हें महालक्ष्मी जी का वाहन मानते है। लक्ष्मी जी का वाहन उलूक को माना  गया है,यद्यपि यहाँ जो छोटी मूर्ति है, उसका स्वरूप उलूक से भिन्न प्रतीत होता है।

चतुर्भुजी हैं माँ महालक्ष्मी - पर मंदिर के पुजारी मनोज उपाध्याय जी की माताजी के अनुसार माँ महालक्ष्मी जी की चार भुजाएं हैं, जिसमें ऊपर के एक हाथ में कमल दूसरे में वर मुद्रा तथा नीचे के एक हाथ में गदा व दूसरा हाथ भी वरद मुद्रा में है।
मंदिर का निर्माण-  नवागढ़ में एक थानेदार थे, एक बार वो किसी केस में फंस गए, तो महालक्ष्मी जी के पास आकर अर्जी विनती किये, कि यदि मै केस जीतने पर आपका छाया बनवाऊंगा, केस में थानेदार जीत हुई, जिससे उसने सन1813 में लक्ष्मी जी का मंदिर बनवाया।

प्राचीन कुआँ- जिस स्थान पर खुदाई से माँ महालक्ष्मी जी की  मूर्ति प्राप्त हुई, वहाँ गड्ढा हो जाने के कारण कुए का रूप दे दिया गया, यह एक अद्वितीय कुंआ है, जिसका जल अभिमंत्रित किया  हुआ है, जिसके लिए श्रद्धालू बड़े दूर-दूर से जल लेने के लिए आते थे तथा कुँए का जल निकालकर पहले खेतों में रोग ना आवे कह कर डालते थे ।


ज्योति कक्ष- ज्योति कक्ष का निर्माण सन  2007 में किया गया, जहाँ नवरात्री के पर्व पर घृत एवं तेल की ज्योति जलवाने बड़े दूर दूर से श्रद्धालुजन आते है

ब्रह्मदेव- माँ महालक्ष्मी जी के मंदिर के पास जहाँ दो पीपल के पेड़ है, उसमे दो मुर्तिया स्थापित है, जिसे कोई ब्रह्मदेव तो कोई  बरम बाबा कह कर पुकारते है




स्रोत:
{1} पं. सोमप्रकाश उपाध्याय
{2}रामनाथ ध्रुव जी 
{3}सुरेंद्र चौबे जी 

माँ शारदा का मंदिर नवागढ़ का इतिहास



इतिहास- सऩ 1973-74 में यहाँ एक विशाल टिला (टापू) था ।  शारदीय नवरात्रि का समय था, कि एक भक्त विष्णु प्रसाद जी मिश्रा के अंदर मां शारदा की शक्ति आती थी। तब दिनांक क्वार सुदी एकादशी, तारीख 13जनवरी 1973 को वे अभी जहाँ  माँ शारदा की मूर्ति विराजमान है, वहाँ  पर बैठ गए। तब ग्रामवासी सलाह मशविरा कर  चंदा वसूली कर रुपए इकट्ठा करके आपसी सहयोग से  मंदिर का  निर्माण किये।{1}

जब मंदिर का निर्माण शुरू हुआ, तब झामिन बाई (पति छन्नूलाल गुप्ता) को भी देवी की शक्ति आने लगी, तो वे लोग माँ शारदा की मूर्ति जयपुर से खरीद कर लाए।{1}
और उनकी अनुपम कृपा से उस टिले में विगत 1973-74 से लेकर मंदिर के निमाणाधीन होते तक, दोनों पर्वो में उपासना में बिना किसी अन्न ग्रहण किए, नौ दिनों तक निरंतर आराधना करते रहे ।{2}
जिसके परिणाम स्वरूप श्री विष्णु प्रसाद जी मिश्रा, श्रीमान मुरेन्द्रधर दीवान जी की अनुशंसा, सहयोग से फिर प्रत्येक लोगों के तन मन धन एवं अथक प्रयास से ग्राम के प्रतिषिठत नागरिक श्री छन्नू प्रसाद जी गुप्ता के द्वारा श्री शारदा मा की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा  मंदिर निर्माणधीन के पश्चात शुभ मुहुर्त और बेला में संवत 2036 में माघ बसंत पंचमी दिनांक 25/01/1996 को आचार्य पंडित राम रतन त्रिपाठी लोरमी द्वारा किया गया।{1}{2}
आज मां शारदा का मंदिर आस्था और उपासना का केन्द्र है ।  दोनों पर्वो में भक्तों द्वारा ज्योति प्रज्वलित की जाती है ।
टीला- ऐसा कहा जाता है जिस स्थान पर मां शारदा का मंदिर बना है, मूर्ति विराजमान है वहां लगभग समान्य धरातल से 200 फीट का उंचा टीला था, वह टीला राजा नरवरसाय का मार्ग दर्शक था ।{2}

उस टीले के उपर कहा जाता है 200 फीट उची सीढ़ीनुमा एक चबुतरा था ।  विशेष परिस्थितियों  में उस चबुतरे में चढ़कर राजा चारों दिशाओं में 15 मील की दूरी तक के देख सकते थे । जहां राजा के विशेष सैनिक बैठ कर पहरा देते हुए रक्षा करते थें इस प्रकार से उक्त टीला किले की रक्षा के लिए बना हुआ था, जहां मां की कृपा से शारदा मंदिर विराजमान है । {2}


शिवमंदिर- शारदा मंदिर के पूर्व में शिव मंदिर यादव समाज द्वारा निर्माण कराया, सन 1992 में।


शनि देव का चबूतरा- शारदा मंदिर के उत्तर में शनि देव का चबूतरा है जिसको ईश्वर चंद पिता अमोलक चंद जैन जी द्वारा सन 2007 में निर्माण कराया गया।



वाटिका- मंदिर के पास में सन 2015 में वाटिका बनाया गया है।


स्रोत -

{1} रामनाथ ध्रुव जी 
{2} सुरेंद्र चौबे जी 

27 March 2017

माँ महामाया देवी एवं समीप के मंदिरो का इतिहास


माँ महामाया देवी 


राजा नरवरसाय शक्ति के उपासक थे, उन्होंने अपने किले के भीतर मां महामार्इ की मूर्ति स्थापित कर एक छोटे से मंदिर का निर्माण कराया था, जो आज उनके धार्मिक आस्था के रूप में हमारे ग्राम का मुख्य शक्ति  आराधना केन्द्र है । 
 कहा जाता है कि जो हमारे यहां महामार्इ देवी की मूर्ति है, वह बहुत ही सिद्ध एवं जागृत मूर्ति है ।  हमारे ग्राम के कर्इ पंडे पूजारियों एवं भक्तों को इनके साक्षात्कार का अनुभव भी प्राप्त हुआ है।  
मां महामार्इ वरदानसिद्ध मनोकामना शीघ्र पूर्ण करने वाली है । राजा के कार्यकाल में विशुद्ध घी का ही ज्योति जलाने की प्रथा थी ।  धीरे-धीरे अभावों में तेल ज्योति भी प्रारंभ हुआ । 
कहा जाता है कि कलचूरी राजाओं की कुलदेवी मां महामाया देवी जी थी, अत: तांत्रिक विद्या के लिए इन्हें सर्वप्रथम प्रतिस्थित किया गया था। 
जीर्णोद्धार- इस मंदिर का जीर्णोद्धार अब तक 25 बार हो चुका है। 25वां जीर्णोद्धार का कार्य श्री सोनराज जी जैन द्वारा सन 1964 में कराया गया । नवागढ़ के महामार्इ की पूर्ति के बारे में कहा जाता है जब मंदिर का जीर्णोद्वार हुआ तो स्थापित मूर्ति को उस स्थान से नहीं हटाना था, चूंकि मंदिर की दीवाल ढहने के कारण प्राचीन मूर्ति क्षतिग्रस्त ना हो, इस उद़देश्य से ग्राम के आचार्यो से विचार विमर्श कर मंदिर के निर्माण होते तक मूर्ति को तालाब के किनारे पीपल वृक्ष के नीचे रख दिया।


मंदिर के जीर्णोद्वार के बाद पुन: मां महामार्इ की मूर्ति को मंदिर में पुन: प्रतिस्थापित करने के लिए उठाने का जब प्रयास किया गया तो मूर्ति हिली तक नहीं । तब हमारे गांव के देवी भक्त लोग पूजा-अर्चना अनुष्ठान से देवी जी का मान मनव्वल कर क्षमाप्रार्थी बन मां से प्रार्थना करने पर मूर्ति पुन: हल्की हो गयी। तत्पश्चात मां की कृपा से ही पुन: अपने प्राचीन जीर्णोद्धार हुए मंदिर में स्थापित हो गयी । जो आज भी है, इस तरह से मां महामार्इ साक्षत हमारे ग्राम नवागढ़ का आस्था का केन्द्र है।
मुख्य मंदिर के निकट अन्य देवी देवताओं की मंदिर स्थापित है ।  मां महामाया देवी का उल्लेख श्री दुर्गा सप्तसती नामक पुराण में मिलता है । 
नवरात्रि में समान रूप से महामाया, दुर्गा तथा कन्या पूजन का विशेष महत्व मनाते है तथा सैकड़ो ज्योति-कलश प्रज्जवलित किए जाते है । 

देवी मंदिर 
महामाई के मंदिर से लगा हुआ उत्तर दिशा में भैया लाल जी द्वारा छोटा सा मंदिर देवी का बनवाया गया है।




इसके उत्तर में लगा हुआ सोनकर समाज के द्वारा माँ दुर्गा का सार्वजनिक मंदिर बनवाया है, उसके उत्तर में लगा हुआ, साहू समाज का सती चबूतरा एक छोटे मंदिर के रूप में बनवाया है।
गायत्री मंदिर
मंदिर के पुर्व भाग में अमोला बाई बे. लेड़गा राम साहू सुकुल पारा वाले ने गायत्री देवी की मूर्ति स्थापना की है। जिसमे 50 डिसमिल जमीं चढ़ाया गया है।

माँ शीलता देवी
राजा के जमाने का पुराना मूर्ति खंडित होने पर, ओंकार प्रसाद पिता कमल सिंह द्वारा प्राण प्रतिष्ठा कराया गया है। ग्रामवासी गांव में किसी को चेचक का प्रकोप होने पर शीतला माँ में जल चढ़ाते हैं तथा नारियल फोड़कर होम धूप देते हैं, जिससे प्रकोप शांत होता है।




बिहारी बाबा
गायत्री देवी एवं शीतला देवी के मंदिर बीच में बिहारी बाबा की समाधि है। समाधी से लगा हुआ हनुमान जी की पंचमुखी मूर्ति राम जानकी लखन गणेश जी और साई बाबा की मूर्ति ओंकार ताम्रकार द्वारा मंदिर निर्माण कर मूर्ति का स्थापना कराया गया है।

शंकर मंदिर
महामाई के दक्षिण दिशा में तालाब पार यक्षणी चबूतरा में साहू समाज सार्वजनिक शंकर मंदिर बनवाए है।

काली माँ का चबूतरा
मानाबंद के उत्तर पार में सार्वजनिक कुटी बनाया गया, दशहरा के समय वहां पर महिषासुर वध का अभिनय करते है।

बाबा महेन्द्रनाथ
मानाबंद के पूर्व पार में बाबा महेंद्र नाथ का चबूतरा बनाया गया है।



स्रोत:
{1}रामनाथ ध्रुव जी 
{2} सुरेंद्र चौबे जी 


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