25 May 2017

छ.ग. का प्रथम आदिवासी विद्रोह सोनाखान में नहीं, नवागढ़ में हुआ था

नवागढ़ के इतिहास जानने की कड़ी में पत्रिका न्यूज़ पेपर के संवाददाता श्री राकेश तिवारी जी व से. नि. पटवारी श्री रामनाथ ध्रुव जी के मार्गदर्शन व सहयोग से छ. ग. के जाने-माने इतिहासकार डॉ. बसुबन्धु दिवान जी से हमें यह ज्ञात हुआ कि छत्तीसगढ़ के इतिहास में आदिवासियों का प्रथम विद्रोह 'सोनाखान के विद्रोह' के रूप में जाना जाता है, जो उपलब्ध तथ्यों के अनुकूल प्रतीत नहीं होता। वस्तुतः छत्तीसगढ़ में आदिवासियों का प्रथम विद्रोह नवागढ़ में हुआ था और महारसिया नामक आदिवासी नेता ने इसका नेतृत्व किया था। महारसिया छत्तीसगढ़ में सर्वप्रथम शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने वाला आदिवासी नेता था, जो जमीदार परिवार का था।

सन 1818 में छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश नियंत्रण में आया। सन 1820 के नवम्बर और दिसंबर माह में ब्रिटिश रेसिडेंट मि. जेन्किन्सन ने जब छत्तीसगढ़ की यात्रा की तब रायपुर पहुंचने पर उन्हें महारसिया और सावंत भारती नामक दो व्यक्ति को जेल से रिहाई बावत दो आवेदन पत्र प्राप्त हुए। महारसिया नाम व्यक्ति नवागढ़ जमीदार के शासक परिवार का वंशज था, वह शासक के पद पर कभी नही था। किंतु मराठा शासन से उसे 300₹ मासिक भत्ता प्राप्त होता था।

बाद में मराठा शासन की खिलाफ विद्रोह करने के अभियोग में उन्हें भत्ता सुविधा से वंचित कर दिया गया और मराठों ने नवागढ़ के जमीदारों पर कड़ाई बरतते हुए राजस्व को बढ़ाकर 3000/- रुपए प्रतिवर्ष कर दिया। (शासन से मिलने वाला भत्ता उसके महत्त्व को प्रदर्शित करता है)

अप्पा साहब के पदच्युत होने के बाद महारसिया ने अपने पैतृक प्रतिष्ठा को प्राप्त करने का पुनः प्रयास किया, किंतु वह असफल रहा, अतः वह प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हो गया। अपने प्रभाव और आक्रामक नीति के कारण वह नवागढ़ क्षेत्र के सरकारी राजस्व को हानि पहुंचाता रहा। वह नवागढ़ क्षेत्र में शासन विरोधी व्यक्ति के रूप में विख्यात हो गया।

जब छत्तीसगढ़ पुनः अंग्रेजो के अधिपत्य में आया, तब मि. एगन्यू ने महारसिया के समक्ष उसे क्षमादान करने तथा उसके पूर्व पेंशन को जारी रखने का प्रस्ताव रखा, परंतु उसने उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देशभक्ति का परिचय दिया।

जब किसी तरह बात नही बनी, तब अंग्रेज़ो ने उसे जेल भेज दिया। सन 1819 में वह मिस्टर एगन्यू के सुपुर्द कर दिया गया व गिरफ्तार महारसिया से अंग्रेजो की ओर से यह जमानत मांगी गई कि वह पहले की तरह शासन के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करेगा। चूंकि महारसिया संघर्ष करते करते टूट चुका था, इसलिए उन्होंने बात मान ली।

इस आश्वासन के बाद महारसिया को अंग्रेजो ने छोड़ दिया और उसकी जीविका हेतु ₹500 प्रतिमाह भत्ते है प्रावधान किया ।

इसका उल्लेख पोलिटिकल डिस्पैच नंबर 41 में मिलता है।  महारासिया के ही विरोध को आगे चलकर सोनाखान जमींदार रामराय ने आगे बढ़ाया किन्तु मैक्सन नामक अंग्रेज ने उसे पराजित कर नियंत्रित कर लिया।

यह उल्लेख निम्न स्थानों पर भी मिलता है-

1.शोध प्रपत्र- ग्रामीण विकास और अशासकीय संगठन एक राजनीतिक विश्लेषण 
PRSU Thesis No. T 22717

2.शोध प्रपत्र- दुर्ग जिले के विकास में पंचायती राज व्यवस्था का योगदान 
PRSU Thesis No. T 21857

3. जिला प्रशासन दुर्ग द्वारा 2006 में प्रकाशित पत्रिका- शतायु दुर्ग 

श्री बसुबन्धु दीवान जी इतिहास में Phd हैं, 11th और 12th की इतिहास की युगबोध प्रकाशन की किताब भी इन्ही की लिखी हुई है । इन्होंने 1990 में ही महारसिया की ब्रिटिश डाक्यूमेंट्स से खोज कर ली थी, जो 1990 में दैनिक नवजागरण अख़बार में भी प्रकाशित हुई थी। दीवान जी क्षेत्रिय इतिहास का अन्वेषण कर लोगो को अवगत कराते रहते हैं। मक्खनपुर के पुरातात्विक महत्व को भी दीवान जी 1995 से उठाते आ रहे हैं, जो समय-समय पर अखबारों के माध्यम से लोगों व शासन के मध्य प्रसारित होती रहती है।

26 March 2017

नवागढ़ की सीमा व विस्तार

नवागढ़ का रकबा- 4150 एकड़ 13 डिसमिल

नवागढ़ का सरहद 22 गांवो से लगा है।
पहले यहाँ 126 तालाब थे। अब 10 शेष है।

12 March 2017

आज भी बचे है नवागढ़ में राजाओं के निशान

मानाबंद तालाब के समीप तथा देवांगन धर्मशाला के पीछे राजाओं का मठ आज भी स्थित है। जो पूर्ववर्ती राजाओं की गाथा बयां करती है। यह मठ पत्थरो से बना हुआ है। यहाँ पर दो मठ आस पास में स्थित है।




10 March 2017

जानिए नवागढ़ में कहाँ है घी कुड़िया और क्या है उसका इतिहास


मानाबंद तालाब के पास घी कुड़िया है, उसके संबंध में बताते थे कि उसमें महामाई स्नान करती थी।

राजा को जब घी की जरूरत पड़ी तो महामाई ने राजा से कहा की घी कुड़िया से जल निकाल कर घी का काम कर लो, तब से उसे घी कुड़िया कहते हैं। बताते थे कि उसमें सीढ़ी बना हुआ है, हो सकता है कि दूसरी जगह जाने के लिए सुरंग बना रहा होगा।


09 March 2017

प्राचीन देवी देवताओं एवं मंदिरों की निर्माण तिथि

 किला की निर्माण शुरू 
 सन 580
बीच बस्ती श्रीगणेश मंदिर निर्माण
 सन 647 जीर्णोद्धार 1880, 1936, 2009
मानाबंद तालाब पार महामाई
 सन 6, 7 वी शताब्दी जीर्णोद्धार 1964 
शीतला खंडित पश्चात नया मूर्ति स्थापना
 सन 2007
गायत्री मंदिर निर्माण
 सन 1997 
महामाई के पास शक्ति देवी भैया लाल
 सन 1970
महामाई के पास सोनकर समाज की देवी
 सन 1968 
साहू समाज की सती स्थल :
 सन 2000 
साहू समाज की शंकर मूर्ति :
 सन 2000 
काली माई
 सन 2002 
महेंद्रनाथ चबूतरा
 सन नया है 
ठाकुर देव मंदिर जीर्णोद्धार
 सन 2004 
शिव मंदिर
 सन पुराना है
शिव मूर्ति साईं बाबा नागदेव
 सन 2006 
किला में शारदा मंदिर निर्माण
 सन 1990 
प्रतिष्ठा
 सन 1996 
शिव मंदिर यादव समाज
 सन 1992 
शनिदेव चबूतरा
 सन 2007 
भैरव भाठा भैरव बाबा जीर्णोंद्धार
 सन 2008 
जुड़ावनबंद तालाब के पास लक्ष्मी नारायण मंदिर
 सन पुराना है 
चांदाबंद के पार में शक्ति मंदिर जीर्णोद्धार
 सन 1995 
मांगनबंद तालाब में स्वयंभू शिव मंदिर जीर्णोद्धार
 सन 1969 
दाऊबंद पार शिव मंदिर
 सन पुराना है 
सुरकी तलाब राम मंदिर
 सन 1660 के आसपास 
सुरकी तालाब कृष्ण मंदिर
 सन् 1911 
सुरकी तालाब महालक्ष्मी मंदिर
 सन् पुराना है 
नगर पंचायत महावीर मंदिर जीर्णोद्धार
 सन 2009 
बावली जिर्णोधार 1964
 सन 16 वी शताब्दी 
बावली शिव मंदिर
 सन 1972 के आसपास 
बावली चंडी मंदिर
 सन 1988 
नया तालाब पार शिव मंदिर मरम्मत
 सन 1848 
नया तालाब पार हनुमान मंदिर
 सन 1997 
नया तालाब पार नीम के नीचे शिवजी
गुप्ता पारा गुरुवाइन चौरा
  
पंजाबीपारा महाराष्ट्रीय गुरु का चरण चिन्ह

नक्खीबंद तालाब में नक्खी बाबा चबूतरा

दर्रीपारा में कंकालिन देवी

दर्रीपारा में शिव पंचायत सहङादेव
 सन 2009 
जायसवाल धर्मशाला में सहस्त्रबाहु मूर्ति
 सन् 2009 
पुराना मस्जिद
जीर्णोद्धार
 1741
सन 2004 
गुरुद्वारा पहले,
 विस्तार
 1960 में
  सन 2009 
मजार
 सन 1987 
जैतखाम तिलकापारा, लालबंद, मातापारा
  
संत रविदास बाबा की मंदिर सुकुल पारा में

गणेशाबंद तालाब के पास महावीर मंदिर

गोंड़पारा में बूढ़ादेव
  
बारी के देवता
  
तेलीपारा में सोनकर समाज की शक्ति

गणेश मंदिर के पास शमी वृक्ष

सामुदायिक भवन के पास हनुमान मंदिर
 सन 2003 
बिजली ऑफिस के पास नीचे तल में श्री शिव पंचायत ऊपर तल में श्री पंचमुखी हनुमान जी, श्री राम जानकी लक्ष्मण
 सन 2010

जानिए नवागढ़ में किस भवन का निर्माण कब हुआ

प्रथम पोस्ट ऑफिस
1857
प्रथम पुलिस थाना
1861
प्रथम प्राथमिक शाला
1862
प्रथम मिडिल स्कूल
1915
द्वितीय मिडिल स्कूल
1946
तृतीय मिडिल स्कूल
1949
प्रथम ग्राम पंचायत
1924
प्रथम पशु चिकित्सालय
1938
प्रथम हाई स्कूल
1962
प्रथम कन्या प्राथमिक शाला
1966
प्रथम कन्या मिडिल स्कूल
1967
प्रथम कन्या हाई स्कूल
1988
प्रथम महा विद्यालय
1992
प्रथम न्याय पंचायत
1952
प्रथम सरस्वती शिशु मंदिर
1990
प्रथम लिबर्टी स्कूल
1992
प्रथम ज्ञान मंदिर स्कूल
1997
प्रथम इंडियन पब्लिक स्कूल
1999
प्रथम विद्या भारती स्कूल
2003
प्रथम स्वामी विवेकानंद स्कूल
2004
प्रथम गुरुकुल विद्यालय
2006
प्रथम ललित विद्यालय
2009
प्रथम विकास खंड
1962
प्रथम जनपद पंचायत
1969
प्रथम तहसील कार्यालय
1857
द्वितीय तहसील कार्यालय
1982
प्रथम आयुर्वेदिक औषधालय
1937
प्रथम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र
1962
प्रथम कृषि उपज मंडी
2006
प्रथम उपपंजीयक
1984
प्रथम नगर पंचायत
2004
प्रथम कुष्ठ रोग चिकित्सालय
1941
प्रथम बस सेवा
1956
प्रथम बस सेवा नियमित
1967
प्रथम बस स्टैंड
2003
प्रथम बिल्ली विस्तार
1971
प्रथम आंगनवाड़ी
1990
प्रथम शिक्षा गारंटी
1998
प्रथम टेलीफोन सेवा
1985
प्रथम नहर
1970
प्रथम डाक बंगला
1984
प्रथम जिला सहकारी बैंक
1974
प्रथम स्टेट बैंक
1977
प्रथम दुर्ग राजनांदगांव बैंक
1995
प्रथम कांजीहौस
1931
प्रथम वाचनालय
2001
प्रथम अनुसूचित जाति छात्रावास
1990
प्रथम सुकुल पारा मोहरंगिया पुल
1970
द्वितीय
1999
प्रथम बावली मोहरंगिया पुल
1992
द्वितीय
2002
प्रथम छुईहानाला पुल भैयालाल
1969
द्वितीय छुईहानाला पुल शासकीय
2002
प्रथम छुईहानाला मिश्रापारा पुल
2004
प्रथम बिजली 132 के वी
2003
प्रथम पेट्रोल पंप
2006
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